नमन है देश को मेरे

महकता है सदा उनकी भुजा में देश का चंदन,
कटाकर शीश को अपने, करे भारत का वो वंदन,
चले जाते थे रक्षा को, पहनकर मौत का बाना,
महल को छोड़ जंगल में, चला मेवाड़ का राणा,
लिए हाथो में शमशीरे, नयन में ज्वाल को भरकर,
चले जाते नहीं रुकते, कभी भी मौत से डरकर,
भुलाकर गीत को अपने, धरा के गीत को गाते,
सदा गौरव बढा देती हैं, वो इतिहास की यादें,
माता भारती के मान में, सब वार देते थे,
धरा की आरती में सज्ज, होकर भाल देते थे,
लड़े होकर सदा निर्भय, कभी ना मौत से डरते,
शीरा में रक्त के बदले, वो केवल शौर्य को भरते,
भले ही ज्ञात है अंतिम, कभी रण छोड़ ना जाते,
जो सम्मुख देख मृत्यु को, अरि से मात ना खाते,
जिए तो सिंह की भांति, कभी झुकते नहीं देखा,
कभी मस्तीक्ष पर देखी, नही थी खौफ की रेखा,

युगों तक गूंज हैं जिसकी, नमन ऐसी जवानी को,
कभी भुला नहीं सकते, रची पावन कहानी को।
समूचे विश्व में पहुंचा दिया वो ज्ञान भारत का,
रहे ऊंचा सदा ऊंचा, वही सम्मान भारत का।।


रवि यादव, कवि
कोटा, राजस्थान
9571796024

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