भगत सिंह

*शहीदे आजम भगत सिंह* की जीवन यात्रा 
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वीरों किंचित भूल न जाना, भगत सिंह की गाथा को,
आज़ादी निज पुत्र दिया, है नमन हजारों माता को,
उदित क्रांति की ज्वाला का, आगाज दिखाई देता था
अंग्रेजों को भगत सिंह में, यमराज दिखाई देता था
जिसके मस्तक पर शंकर के, घोर सितारे रहते थे,
उसी गजब दीवाने को हम, शेर भगत सिंह कहते थे
शोनित से जो अंकित है, वो गौरवगान नहीं भूलो,
जलियावाला बाग कांड का, वो बलिदान नही भूलो,
खून से लथपथ सनी धरा, लाशों का जब अंबार दिखा,
गोरे शासन के द्वारा, जब बंदूकों का वार दिखा।
परिवार की सारी यादों से, वो मुंह मोड़ कर चले गए,
पिता के तकिए के नीचे, एक पत्र छोड़ कर चले गए,
भारत मां की देख दशा, ना कभी चेन से सोता था,
प्रतिशोध का भाव लिए, खेतों में बंदूके बोता था।
लाशे जलीया बाग कांड की, देख के पानी भूल गया,
आज़ादी को दुल्हन माना, और जवानी भूल गया।
चला काल को संग लिए, हर वादी डोल गई होगी,
भगत सिंह को देख देख, आजादी बोल गई होगी,
भगत सिंह मां के आंचल का, कर्ज चुकाने आया है,
भूल गए सब लोग यहां, वो कर्ज निभाने आया है,
मौन पड़ी आवाजों में, पूरा भारत गरजाया था,
जिस दिन गोरो की छाती पर, उसने बम बरसाया था,
खबर सुनी जब लाला की, आक्रोश हृदय में जाग गया, 
चल दिया मारने सांडर्स को, और आठ गोलियां दाग गया,
जल उठी ज्वाल आजादी की, गोरों को धूल चटाएंगे,
मातृभूमि की रक्षा को, भारत से इन्हे मिटाएंगे,
हर हर शंकर इंकलाब के, नारे ऐसे छाए थे,
नर नारी बच्चे बूढ़े, अंग्रेज भगाने आए थे,
आज़ादी के हवन कुण्ड की ज्वाला में जलना होंगा,
खिल खिले फूल के बाग छोड़, अब काटो में चलाना होगा,
लगी फासियां कटे शीश, पर फिर भी हार नही मानी,
जल गए पांव जल गए गांव, पर फिर भी हार नही मानी,
गोरे घबरा गए देखकर, कायर की भांति पकड़ लिया,
क्रान्ति का ज्वाल बुझाने को, फिर भगत सिंह को पकड़ लिया,
किन्तु ज्वाला कहां रुकी थी, गोरों की जंजीरों से,
एक भगत सिंह कैद हुआ है, और खड़े है हीरो से,
नियति ने कैसा खेल रचा, जुगनू ने सूरज कैद किया,
डरे हुए गोरों ने उसको, फांसी का संदेश दिया,
वो मतवाले वो दीवाने, बेखौफ हसी से बोल उठे,
दर्द भरी आंखों में फिर से, इंकलाब के शोर उठे,
मां ना रोना फांसी पर, अरदास तुम्हे में कहता हूं,
वरना भारत बोलेगा, मै कायर मा का बेटा हूं,
अंधकार का अंत लिए, जैसे दिनकर का भोर हुआ
वीरों की बोली में फिर से, इन्कलाब का शोर हुआ
समय हुआ अब फांसी का, नम थी भारत की आंखे,
कैदी बोले नतमस्तक है, ऐसे दीवानों के आगे,
सुनी कदम की आवाजे, और क्रांति की आवाज सुनी,
रंग दे बसंती गीत सुना  वो इंकलाब की राग सुनी,
वीर लिपट कर बाहों में, बोले मशाल का काम किया
भारत की माटी शीश लगा, झुककर के उसे प्रणाम किया
लगी फांसिया फंदे से, वो फंदा कांप गया होगा,
सोया वो इतिहास धरा का, फिर से जाग गया होगा,
रोई होगी भारत माता, फुट फुट कर आंखों से,
चले दीवाने देवलोक में, घनी अंधेरी रातों से,

*हे राजगुरु सुखदेव भगत सिंह, नमन अमर बलिदान को,*
*इतिहास रखेगा याद सदा, तुझमे ही हिंदुस्तान को,।।*

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*रवि यादव, कवि*
*रामगंज मण्डी, कोटा*
*9571796024*

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