संदेश

कर्मवीर

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पतझड़ आई है जीवन में, हर पात धरा पर गिरती है, गिरती उमंग उल्लास नया, विपदाएं आहे भरती हैं, गिरकर उठकर बाधाओं में, बेखौफ खडे हो जाते थे, सूरज की तपती गर्मी में, मिलकर जो कदम बढ़ाते थे, पर आज खडे संघर्षों में, होकर निराश हो कर निर्झर,  लगता है डर से बांधा हैं, उसने निज सीने पर पत्थर, पर बोलो बिन बाती जग में, यहां किसका दीपक जलता हैं, बोलो बिन तपे यहां लोहा, कैसे आकार बदलता है, जैसे कि घोर अंधेरे में, जुगनू अंधियारा हरते हैं, कोई खेतों की गोदी में, बिन रुके हौसला भरते है, कसकर हाथों को जो निर्भय, विघ्नों को गले लगाते हैं, है निश्चीत वो ही जीवन में, अपना इतिहास बनाते हैं,  रवि यादव, कवि कोटा, राजस्थान 9571796024

राम

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राम छांव प्रेम की, तपन की तेज धुप हैं, राम ही विजय का दीप, त्याग का स्वरूप है,  राम में बसा हुआ, जगत का पूर्ण ज्ञान है दिव्यता का तेज स्वयं, सूर्य के समान है, प्रेम में अनंत और, कपट में राम शून्य है  हरते है सारे पाप, राम मे ही पुण्य है  आदर्श में प्रथम रहे, जगत की राम प्रेरणा, ऋषियों के रोम रोम व्याप्त, राम चेतना धैर्य दिव्यता का और, धीरता भी राम है  शस्त्र भी झुके जहा, वो वीरता भी राम है राम वचन की सुन्दरतम, परिभाषा हैं राम जगत के पुरुषों, की मर्यादा है, राम पाप के मर्दन, का स्थान है, राम धर्म है, राम कर्म का गान हैं, राम धैर्य है राम शौर्य की भाषा है, राम प्रेम की पावनतम अभिलाषा है, राम चरण ही मानव का विश्राम है  राम वही है जिनमे चारों धाम है रवि यादव, कवि कोटा राजस्थान 

हिंदू है हम 🚩🙏

कल्याण विश्व का हो बोले, उन मुनियों का संदेश हमीं  रामायण का वचन हमीं, और गीता का उपदेश हमीं  जिसने मां को मुख में ही, ब्रम्हांड बताया वो हिंदू  सारी धरती को अपना परिवार, बताया, वो हिंदू, बहन बेटियों के आंचल को, गन्दा नहीं किया है, प्राण गए पर इस धरती का, धंधा नहीं किया है, बोलो हमने कब निर्दोषों को, फांसी चढ़वाया, बहन बेटियों को हमने, कब दासी बनवाया,  कब हमने अपनों के ऊपर, तलवारे चलवाई ,  कब अपनो की लाशों पर, हमने दिवारे बनवाई।  हमने शुन्य बनाया और हमने, दुनिया को ज्ञान दिया,  और हमें ही दुनिया ने भी, विश्वगुरु का मान दिया,  जहां नर में बसते राम कृष्ण है, नारी में राधा सीता है,  आदर्श सिखाती रामायण, तो राहे भगवत गीता है। जिसने पहनी मातृभूमि हित, विपदाओं की माला, सदा शिखर पर गढ़ा रहे, वो स्वाभिमान का भाला, समरांगण में निर्भय होकर, आगे कदम बढ़ाना, मर जाना पर नहीं सिखाया, डरकर पीठ दिखाना, मैं खड़ा हिमालय के जैसा, मैं ब्रम्हपुत्र मैं सिंधु हूं, ये भाग्य नही सौभाग्य मेरा, और गर्व मुझे मैं हिन्दू है। रवि यादव, कवि कोटा, राजस्थान 9571796024

🙏 हम सभी वंदन करें 🙏

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भूल कर निज स्वार्थ को, सब कुछ समर्पित कर चले, आज मिल कर भारती का, हम सभी वंदन करे छोड़ कर बंधन सभी, जिसने दिवस उज्जवल दिया  खुद ने हलाहाल विष पिया, इस देश को अमृत दिया, शीतल करे जो देह को, उस भाल का चंदन बने  आज मिल कर भारती, का हम सभी वंदन करे, जिसने सदा हाथों में, थामा त्याग को बलिदान को शून्य भर घटने दिया ना, भारती के मान को, उनकी चरण रज से सभी , हम धन्य ये जीवन करे  आज मिल कर भारती का, हम सभी वंदन करे हैं यही अब कामना, दीपक तेरा युग युग जले, और मां हम लाल तेरी, छांव में पलते रहे जिसमे समाया विश्व का, उस तेज का दर्पण बने आज मिल कर भारती का, हम सभी वंदन करे रवि यादव, कवि कोटा, राजस्थान 9571796024

शत् शत् नमन हमारा 🙏😇

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इतिहास को हमारे, पत्थर बता रहे हैं, हर एक प्रश्न के वो, उत्तर सुना रहे है, प्रचण्ड शौर्य लेकर, हमने जगत बचाया, जो प्रेम लेके आया, उनको गले लगाया,  संतान को हमेशा, संस्कार दे के पाला, थाली में भी परोसा, सम्मान का निवाला, बलिदान से हमेशा, इतिहास को रचा है  ध्वनियां सुनाई ना दे, कोना कहा बचा है  मृत्यु भले निकट हो, भय शून्य भर ना देखा, अंकित रही सदा से, तप शौर्य की वो रेखा त्याग की घड़ी में, निज शीश को धरा है, तन में लहू के बदले, बस शौर्य को भरा है, रक्षार्थ बेटियों के, आगे किया है सीना  अधिकार किसका हमने, निज स्वार्थ हेतु छीना, सोए हुए हृदय में, देश प्रेम को जगाए, मांए सुनाती हरदम, बलिदान की कथाएं अभिमान छोड़ करके सम्मान को बुना है, हमने स्वयं से पहले, इस राष्ट्र को चुना है अपने लहू से मां का, श्रृंगार करने वाले, विपदा में शिव के जैसा, अवतार धरने वाले, जिनकी भुजा में बसते, शंकर स्वयं भवानी, वो वीर दे गए जो, इस राष्ट्र को जवानी, भयभीत होके बोलो, वीर कब मरा है  संग्राम में हमेशा, निर्भय हुए खड़ा है लड़ कर भी आंधियों से बनते रहे सहारा उन वीर के चरण में शत् शत् नमन हमारा

गुरुवर बहुत उपकार है 🙏🙏

अपने मधुर वचनों से गाते, सृष्टि के अनुराग को, जो सहज स्वीकारते है, इस जगत के त्याग को। सब मोह बंधन छोड़ के, धारण किया वैराग्य को, और कर स्पर्श से, वैदिक किया हैं भाग्य को। हैं पथिक वे पथ अलौकिक, धर्मयुग निर्माण में, मस्तिक्ष पर है दिव्यता, और तेज है वरदान में जो सदा चलते रहे हैं, धर्म के आधार पर, जिनकी दया रहती है निस दिन, इस दुखी संसार पर, जिसने सदा मन में बसाया, धर्म के पुरुषार्थ को नित कष्ट है किंतु चुना है, मुक्ति वाले मार्ग को कामना करते सदा ही, विश्व के कल्याण की, और वाणी बोलती है, राष्ट्र के उत्थान की, जो कर रहे हैं कामना, जो कर रहे हैं साधना, हर एक पल जो कर रहे है,धर्म की आराधना 'अहिंसा परमो धर्म' पथ पर, अग्रसर गुरुवर सदा, त्याग, तप, करुणा लिए, चलते रहे गुरुवर सदा है सरोवर ज्ञान का, हर एक का उद्धार हो, जिनके दर्शन मात्र से ही, हर सुखी परिवार हो, है विमुख धन धान्य से, बस धर्म ही आधार है, हर मनुज पर आपके, गुरुवर बहुत उपकार है दीन दुखियों के मुखों से, आपकी जयकार है, हर मनुज पर आपके, गुरुवर बहुत उपकार है करू सेवा तो लाखों, कष्ट भी स्वीकार है हर मनुज पर आपके, गुरुवर बहुत उप

"ये जिंदगी" इम्तिहान ले रही है

ऊंचे आसमान की उड़ान ले रही है, ज़िंदगी इम्तिहान ले रही हैं  हंसते हंसते चलते कभी हम आज आंसू में दबते गए चहरे पे खुशियों की चादर कभी हम आज यादों में दबते गए  जिम्मेदारियों के हिसाब ले रही है ज़िंदगी इम्तिहान ले रही हैं, ऊंचे आसमान की उड़ान ले रही हैं ज़िंदगी इम्तिहान ले रही हैं  बुने हुए लम्हों के ख्वाब कभी, ठहरी हुई उस धड़कन को लिए, मायूस है इस सफ़र में सभी आज सोचते हैं, बचपन के लिए  गांव में बना था मकान ले रही हैं ज़िंदगी इम्तिहान ले रही हैं 2 ऊंचे आसमान की उड़ान ले रही हैं ज़िंदगी इम्तिहान ले रही हैं दादी मां की सुनते कहानी कभी, आज हम खुद की कहानी लिखे, मंजिले नही थी नहीं कुछ खबर आज ठोकरों की जवानी लिखे बाप की वो गिरवी दुकान ले रही हैं ज़िंदगी इम्तिहान ले रही हैं ऊंचे आसमान की उड़ान ले रही हैं ज़िंदगी इम्तिहान ले रही हैं रवि यादव, कवि 9571796024