राम

राम छांव प्रेम की, तपन की तेज धुप हैं,
राम ही विजय का दीप, त्याग का स्वरूप है, 
राम में बसा हुआ, जगत का पूर्ण ज्ञान है
दिव्यता का तेज स्वयं, सूर्य के समान है,
प्रेम में अनंत और, कपट में राम शून्य है 
हरते है सारे पाप, राम मे ही पुण्य है 
आदर्श में प्रथम रहे, जगत की राम प्रेरणा,
ऋषियों के रोम रोम व्याप्त, राम चेतना
धैर्य दिव्यता का और, धीरता भी राम है 
शस्त्र भी झुके जहा, वो वीरता भी राम है


राम वचन की सुन्दरतम, परिभाषा हैं
राम जगत के पुरुषों, की मर्यादा है,
राम पाप के मर्दन, का स्थान है,
राम धर्म है, राम कर्म का गान हैं,
राम धैर्य है राम शौर्य की भाषा है,
राम प्रेम की पावनतम अभिलाषा है,
राम चरण ही मानव का विश्राम है 
राम वही है जिनमे चारों धाम है



रवि यादव, कवि
कोटा राजस्थान 



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